वो डरावनी शाम और मेरी साइकिल | bhayanak darawani raat
रमेश के मन में डर था कि कोई जंगली जानवर उसपर हमला न कर दे।
शाम के पांच बज रहे थे। रमेश अपने मामा के गाँव से अपने गाँव जाने के लिए साइकिल लेकर निकल गया। रमेश का गाँव उसके मामा के गाँव से दस किलोमीटर दूर था। रमेश का गाँव बहुत पिछड़े इलाके में था इसलिए वहा कि सडके भी कच्ची थी और रमेश के मामा के गाँव से लगकर एक सीधी नहर रमेश के गाँव तक जाती थी। इसलिए रमेश हमेशा नहर से लगे कच्चे रास्ते से होकर ही अपने मामा के गाँव आता जाता था यह सबसे सीधा और छोटा रास्ता था। वह रास्ता उबड़ खाबड़ भी था।
रमेश अपने मामा के घर से नहर के रास्ते होते हुए कुछ दूर आ चुका था लगभग दो किलोमीटर, तभी रमेश कि साइकिल का संतुलन बिगड़ गया और रमेश साइकिल लेकर गिर गया। साइकिल बहुत ही पुरानी थी वह साइकिल रमेश के पिताजी को उनके शादी में मिली थी। इसलिए गिरने कि वजह से साइकिल का चिमटा टूट गया और साइकिल के आगे का पहिया अलग हो गया। रमेश भी उस समय बहुत छोटा था उसकी उम्र लगभग तेरह साल थी उसने साइकिल अभी चलाना सीखा ही था इसके अलावा उसे साइकिल के बारे में कुछ भी मालुम नहीं था। रमेश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे, उसने किसी तरह से साइकिल के अगले पहिये को ब्रेक के टार के जरिये जोड़कर खड़ा किया और साइकिल को धक्का देकर ले जाने लगा वहा से उसका गाँव दूर था और दिन भी ढल रहा था।
एक बार रमेश के मन में आया कि वह मामा के गाँव वापस लौट जाये क्योकि वहा से उसके मामा का गाँव नजदीक था और रमेश का गाँव काफी दूर था। फिर रमेश ने सोचा कि पैदल जायेगा तब भी एक घंटे में पहुच जायेगा इसलिए वह अपने गाँव कि ओर चलता रहा। लेकिन और कुछ दुरी तय करने के बाद रमेश कि साइकिल फिर से लडखडाने लगी और गिर गयी। रमेश को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? इस बार तो साइकिल का अगला पहिया साइकिल से पूरी तरह अलग हो चुका था और साइकिल भी एक पहिये पर खड़ी नहीं हो रही थी।
रमेश ने यहाँ वहा नज़र घुमाया आस पास दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था उसकी मदद के लिए। तभी कुछ ही दुरी पर एक लड़का दिखा वह अपनी बकरी चरा रहा था उसने रमेश को परेशानी में देखा तो वह दौड़ता हुआ रमेश के पास आया उसके हाथ में एक छोटी रस्सी थी उसने वह रस्सी रमेश को दिया और बोला भैया इस रस्सी से साइकिल का अगला पहिया साइकिल के ऊपर रखकर बांध लो और ले जाओ आगे जाकर साइकिल बनवा लेना, इतना कहकर वह लड़का चला गया अपनी बकरियों के पास। रमेश ने वैसा ही किया साइकिल का अगला पहिया साइकिल के पिछले पहिये के ऊपर रखकर बांध लिया और साइकिल को धक्का मारने लगा लेकिन साइकिल आगे नहीं बढ़ रही थी
रमेश को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हो रहा था वह बार बार सोच रहा था कि वह मामा के गाँव वापस चला गया होता तो अच्छा रहता। रमेश आस पास देख रहा था कि कोई और उसे मदद के लिए दिख जाये क्योकि शाम से रात भी होने वाली थी अँधेरा हो रहा था, तभी एक भैया मोटरसाइकिल पर आ रहे थे उन्होंने रमेश को इस हालत में देखकर मोटरसाइकिल रोकी और रमेश के पास आये और पूछने लगे कि वे उसकी क्या मदद कर सकते है और रमेश कहा जा रहा है यह सब पूछा, लेकिन उन्हें कही और जाना था फिर भी उन्होंने रमेश कि मदद करने कि सोची और रमेश से कहा कि साइकिल लेकर मोटरसाइकिल के पीछे बैठ जाओ मै तुम्हे तुम्हारे गाँव छोड़ देता हूँ। लेकिन उस साइकिल को लेकर मोटरसाइकिल पर बैठ पाना रमेश क लिए संभव नहीं था। रमेश ने दो बार कोशिश कि लेकिन साइकिल लेकर मोटरसाइकिल पर नहीं बैठ पाया। फिर मोटरसाइकिल वाले भैया कुछ देर रमेश के साथ वही खड़े रहे जब तक कोई और वहा मदद के लिए आया नहीं।
तभी कुछ ही देर में एक लड़का जो रमेश से भी कम उम्र का था वह वहा से गुजरता हुआ नज़र आया। उसने अपने साइकिल पर गेहू कि एक बोरी लाद राखी थी। उस मोटरसाइकिल वाले भैया ने उसे बुलाया वह लड़का उनके पास आया तब उस मोटरसाइकिल वाले भैया ने उसे कहा कि रमेश कि साइकिल टूट गयी है इसे साइकिल कि दूकान पर पंहुचा दो। उसने कहा ठीक है मै पंहुचा दूंगा लेकिन पहले इस गेहू कि बोरी को चक्की पर छोड़कर आता हूँ उसके बाद। मोटरसाइकिल वाले भैया में कहा ठीक है और वह वहा से चले गए और वह साइकिल वाला लड़का भी आता हूँ बोलकर चला गया।
अब रमेश फिर से उस रास्ते पर अकेला खड़ा उस लड़के का इंतजार करने लगा उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था अँधेरा भी बढ़ता जा रहा था। आधे घंटे इंतजार करने के बाद वह लड़का वहा वापस आया रमेश कि मदद के लिए। रमेश ने अपनी टूटी हुई साइकिल उसके साइकिल पर राखी और चलने लगा। वह रमेश को वहा से कुछ दूर एक गाँव में साइकिल कि दूकान पर ले गया। शाम हो गयी थी अँधेरा हो चुका था इसलिए साइकिल वाला भी दूकान बंद करने वाला था लेकिन रमेश को देखते ही रुक गया। रमेश ने उसे अपनी साइकिल दिखाई तब साइकिल वाले ने कहा इसका चिमटा टूट गया है नया लगाना पड़ेगा और नब्बे रुपया लगेगा। अब रमेश के सामने एक और समस्या आ गयी उसके पास सिर्फ पैतीस रुपया ही था उसने साइकिल वाले से कहा कि मेरे पास पैतीस रुपया ही है इतने में ही बना दो नहीं तो मै घर कैसे जाऊंगा ? साइकिल वाले ने कहा साइकिल को यही रहने दो मै इसे बनाकर रखता हूँ तुम कल सुबह पैसे लेकर आना और साइकिल लेकर जाना। रमेश के पास और कोई रास्ता भी नहीं था वह बोला ठीक है आप साइकिल को बनाकर रखो मै कल सुबह साइकिल लेने आऊंगा इतना कहकर रमेश वहा से उस लड़के के साथ चल दिया। रमेश साइकिल चलाने लगा और वह लड़का साइकिल पर पीछे बैठ गया। कुछ दूर जाने के बाद उस लड़के का घर नजदीक आ गया और उसने रमेश से कहा भैया मेरा घर आ गया अब मुझे मेरी साइकिल दे दो। रमेश उस साइकिल से उतर गया और उस लड़के को साइकिल दे दिया वह लड़का अपने घर चला गया और रमेश वहा उस सड़क पर अकेला रह गया। उस सड़क पर दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था रास्ता एकदम सुनसान था और रमेश का घर भी वहा से बहुत दूर था। अँधेरा हो चुका था रमेश के पास पैदल जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।
रमेश पैदल ही अपने गाँव कि तरफ जाने लगा आसपास बहुत सन्नाटा छाया हुआ था चारो तरफ एकदम अँधेरा था दूर से कुत्तो के भौकने कि आवाजे आ रही थी। हवा चलने पर पेड़ के पत्तो के हिलने कि आवाजे भी साफ़ सुनाई दे रही थी। रात के अँधेरे में पंक्षियों कि आवाजे भी डरावनी लग रही थी। इस डरावने माहौल कि वजह से रमेश एकदम डरा हुआ था और डर कि वजह से वह एकदम तेज चल रहा था जितना तेज वह चल सके उतना तेज चल रहा था कि जिस से वह अपने घर पहुच जाए। रमेश इतना डरा हुआ था कि यदि उस समय उसके नजदीक आकार कोई उसे डरा देता या जोर से चिल्लाता या किसी डरावनी चीज को देख लेता तो उसे दिल का दौरा भी पड़ जाता या उसकी मृत्यु हो जाती। इस प्रकार से रमेश डरा हुआ था लेकिन रमेश साहसी भी था इसलिए वह डर के साथ साथ अपने आप को समझाते हुए लगातार आगे बढ़ता जा रहा था। रास्ते में सड़क के किनारे बड़े बड़े पेड़ थे जिसमे से चिडियों कि आवाजे भी आ रही थी ये आवाज़े दूर दूर तक सुनाई देती इसलिए रमेश चुपचाप आगे कि तरफ ही देखता हुआ तेजी से चल रहा था उसमे इतनी भी हिम्मत नहीं थी वह अपने दाये बाये देखे। रमेश लगातार तेजी से जा रहा था। रमेश के मन में यह भी डर था कि कही से कोई जंगली जानवर या कोई कुत्ता उसपर हमला न कर दे। रमेश के जेब में एक कपडे कि थैली थी जो काफी बड़ी थी इसलिए वह थैली आधी बहार लटक रही थी और आधी रमेश के पैंट के जेब के अन्दर थी। बाहर लटकने कि वजह से चलते समय रमेश के हाथ से बार बार टकरा रही थी। तेजी से चलने के कारण रमेश का हाथ उस थैली से बार बार तेजी से टकराने लगा और वह थैली बहार निकलने लगी और कुछ देर बाद रमेश के जेब से वह थैली निचे गिर गयी।
थैली के निचे गिरते ही रमेश को पता चल गया कि वह थैली रमेश के जेब से निचे गिर गयी है लेकिन रमेश बहुत ही डरा हुआ था, इतना डरा हुआ था कि पीछे मुड़कर अपनी थैली उठाने कि हिम्मत भी नहीं की। थैली उठाना तो दूर उसने पीछे मुड़कर थैली को देखा भी नहीं इतना डरा हुआ था। डर के मारे रमेश और तेजी से चलते जा रहा था सड़क के किनारे कोई गाँव भी नहीं था जहा से रमेश किसी कि मदद ले पाता। लेकिन ऐसे ही तेजी से चलते हुए रमेश ने आधा रास्ता तय कर लिया था। तभी रमेश को सामने के पुल से कुछ दुरी पर एक आदमी साइकिल पर अकेला आता हुआ दिखाई दिया। रमेश को उस आदमी को देखकर थोड़ी हिम्मत आई और आशा कि एक उम्मीद दिखी रमेश तेजी से दौड़ता हुआ उस आदमी के पास गया। उस आदमी ने भी रमेश को देखा तो वह चौक गया कि इतनी रात में इस सुनसान रस्ते पर यह छोटा सा बच्चा क्या कर रहा है और वह आस पास कोई गाँव भी नहीं था। उस आदमी ने रमेश से पूछा कि तुम कौन हो और इतनी रात में कहा जा रहे हो, तब रमेश ने उसे बताया कि उसका गाँव आगे है और वह अपने घर जा रहा है उसकी साइकिल के टूटने कि वजह से उसे पैदल जाना पड़ रहा है और इतनी देर भी साइकिल के टूटने के कारण हुई है। उस आदमी ने रमेश के गाँव का नाम पूछा रमेश ने उसे अपने गाँव का नाम बताया तब उस आदमी ने कहा कि मै वहा तक तो नहीं जाऊंगा हा लेकिन उसके आधे रास्ते तक ही मुझे जाना है मै तुम्हे आधे रास्ते तक अपनी साइकिल से छोड़ देता हूँ । रमेश ने कहा ठीक है और वह उसकी साइकिल पर बैठ गया।
रमेश को अब डर नहीं लग रहा था वह अब अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहा था और आराम से साइकिल पर बैठा था और अपने घर को याद कर रहा था। कुछ समय के बाद उस आदमी का मोड़ आ गया वह अब वहा से मुड़ने वाला था उसने रमेश से कहा अब मुझे यहाँ से दुसरे रास्ते पर जाना है तुम अब यहाँ से अकेले ही जाओ अब यहाँ से तम्हारा गाँव नजदीक है| रमेश उसकी साइकिल से उतर गया और वह आदमी चला गया। रमेश वहा से फिर अकेला हो गया लेकिन इस बार रमेश को उतना डर नहीं लग रहा था जितना कि पहले था क्योकि इस बार वह अपने गाँव के नजदीक आ चुका था। रमेश फिर से तेज चलने लगा क्योकि रास्ता अब भी डरवाना जैसा ही था और रमेश को घर पहुचने कि जल्दी थी और मन में डर भी था कि कही कोई जानवर उसपर हमला न कर दे। दस मिनट पैदल चलने के बाद रमेश को एक और आदमी साइकिल पर आता दिखाई दिया वह आदमी रमेश के गाँव में ही जा रहा था लेकिन उसे रास्ता नहीं पता था इसलिए वह भी रास्ता पूछने के लिए रमेश के पास आया रमेश के मन में फिर से एक मदद कि नयी उम्मीद जागी वह भी खुश हुआ कि उसे दुबारा कोई उसकी मदद के लिए मिल गया। उसने रमेश से उस गाँव का रास्ता पूछा जहा उसे जाना था रमेश ने कहा कि वह उसी गाँव में रहता है जहा उसे जाना है और जिसके यहाँ जाना है वह रमेश के पडोसी है। उस आदमी ने कहा कि यह तो और अच्छी बात है आओ साइकिल पर बैठ जाओ हम एक साथ चलते है। रमेश भी यही चाहता था रमेश ख़ुशी ख़ुशी उसके साइकिल पर बैठ गया। अब रमेश बहुत ही खुश था कि वह अब सुरक्षित अपने घर पहुच जायेगा अब रमेश के मन में कोई डर नहीं था। रमेश अब एकदम आराम से साइकिल पर बैठा था।
कुछ समय के बाद रमेश उस आदमी के साथ गाँव पहुच गया। गाँव में पहुचने के बाद रमेश ने उस आदमी को जिसके घर जाना था उसके घर पर पहुचाया फिर अपने घर पर आया। तब तक रात के दस बज चुके थे रमेश ने देखा कि उसके घर के सब लोग सो चुके थे। रमेश अपने दादा जी के पास गया और उन्हें जगाया। रमेश के दादाजी रमेश को इतनी रात में देखकर चौक गये और अपने पास बिठाया और बोले कि शाम हो गयी तुम नहीं आये तो हमें लगा कि तुम कल सुबह आओगे। फिर रमेश ने अपने दादाजी को पूरी बात बतायी कि किस तरह मुसीबतों का सामना करता हुआ वह अपने घर पंहुचा है। उसके दादा जी भी यह सब सुकर बहुत हैरान रह गए। रमेश भी कुछ देर अपने दादा जी से बात करने के बाद अपने दादा जी के पास ही सो गया।