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Man ka Gulam / मन का गुलाम

 

 परिचय

Man ka Gulam – सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर क्यू हर व्यक्ति मन का गुलाम है ? वास्तव में यह मन क्या है? मन कि प्रकृति क्या है?  मन को वश में कैसे करे?

मनुष्य के भीतर निरंतर उठने वाले विचार ही मनुष्य का मन है। मनुष्य के भीतर हमेशा अच्छे और बुरे विचार उठते रहते हैं।

मन क्या है?

मन हमारे शरीर के रथ का सारथी है। और इन्द्रिय इस शरीर के रथ के घोड़े है। जो हमें विषय, वस्तु और वक्ती कि ओर भगाते रहते है। मन, आत्मा और शरीर के मध्य में अपना खेल दिखता रहता है।

मन कि प्रकृति  

मन कि प्रकृति नही है काबू में होना। मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है। वह ज्यादा देर कही नहीं ठहरता है। इधर उधर भागता रहता है। जिस प्रकार एक बन्दर कभी भी एक जगह पर नहीं बैठता है, कभी इस डाली पर तो कभी उस डाली पर, कभी पेड़ के उपर तो कभी पेड़ के निचे।

प्रकार मनुष्य का मन भी लगातार भागता रहता है। कभी वास्तु के पीछे, तो कभी विषय के पीछे, तो कभी व्यक्ति के पीछे तो कभी धन के पीछे। मनुष्य के भीतर निरंतर उठने वाले विचारो को ही मनुष्य का मन कहा गया है।

सर्वे के अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क में एक दिन में लगभग साठ हजार विचार आते है। मनुष्य के भीतर हमेशा अच्छे और बुरे विचार उठते रहते। मन के चंचल स्वाभाव के कारण मनुष्य में ज्यादातर अच्छे विचार कम ही आते हैं और बुरे विचार अधिक आते रहते हैं।

मनुष्य अपने बुरे विचारों को नियंत्रित कर लेता है और अपने अच्छे विचारों को अच्छे कर्मों में बदल देता है वह अच्छा इंसान कहा जाता है, और इसके विपरीत जो मनुष्य अपने बुरे विचारों को कर्मों में बदलता है वह बुरा व्यक्ति कहा जाता है।

Man कि माया

मन कि ये सारी माया है कि मन ही बताता है कि मन को वश में करले। जैसे कुता अपनी ही पूंछ को पकड़ने के लिए गोल गोल भागता है, वैसे ही मनुष्य भागता है अपने मन के पीछे। क्योकि मन कि प्रकृति ही ऐसी है कि, मन आपके आगे ऐसी ऐसी बाते रखता है जिसकी न पैर है, न सर है। ये सबकुछ मन कि माया है, ये भागता रहेगा। मन बहुत ही विचित्र है।

मन ने ही यह माया रची है। यह सारा खेल मन का ही है। मन एक तरफ सलाह देता है कि भोग लो, और एक तरफ भय देता है कि क्यू भोगा? क्यू फसा मै अब नहीं फसुंगा। फिर दुसरे पल तीसरे भोग में फसा देता है। मन कि चाल को कोई नहीं समझ पाता है, मन हमारा मित्र है, ये हमें हर पल ऐसे फसाता चला जाता है।   

ज्ञान द्वारा मन को काबू में कर सकते है।

जब मनुष्य को ज्ञान हो जायेगा, अन्दर आनंद मिल जायेगा। तब एक बात पता चल जाएगी मुझे इस मन के पीछे भागने कि जरुरत नही है। ये मन तो भागता रहेगा पर मुझे इसके पीछे नही भागना है। गुरुजन बताते है कि हमारे और इस मन के बिच में कोई रस्सी नही बंधी हुई है, हम मन के साथ बंधे हुए नही है, ये मन भागना चाहता है इसे भागने दो। आप अन्दर कि ओर जाये मन को बाहर कि ओर जाने दे।

मनुष्य अपने कर्म के द्वारा ही अच्छा और बुरा बनता हैं।  इस विषय में एक प्रसिद्ध कहावत भी है कि जैसे ईंटों से मकान बनता है, वैसे ही शुद्ध विचारों से अच्छा इंसान बनता है।

महान लोगो ने कहा है कि, मन का स्वभाव पानी की तरह होता हैं, जैसे पानी सदैव नीचे की ओर जाता है उसी प्रकार मन भी अधिकतर बुराई की ओर ही भागता है।
जिस प्रकार हम पानी को निचे ऊपर ले जाने के लिए यंत्र का प्रयोग करते है, उसी प्रकार मन के स्तर को भी नीचे से ऊपर ले जाने के लिए मंत्र, गुरुमंत्र, नाम जप, अध्यात्म और भजन कीर्तन इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए।  

जब तक मनुष्य अपने मन का गुलाम रहेगा तब तक मनुष्य अपने जीवन में शांति प्राप्त नहीं कर सकता है और न ही प्रभु को प्राप्त कर सकता है। मन को अधीन करने के लिए अध्यात्म और योग उत्तम साधन है।

मनुष्य का अगला जन्म मन में रखी वासना के अंतर्गत होता है।

मृत्यु के समय मनुष्य के मन में जो वासना दृढ रहती है, या अधूरी कामना रहती है, उसी के अंतर्गत मनुष्य का दूसरा जन्म होता है। मृत्यु का क्षण बड़े महत्व का क्षण होता है। इस क्षण में मनुष्य जिस बात का ध्यान करता है, उसी के अनुसार उसे दूसरा जन्म प्राप्त होता है।

उदहारण के लिए महर्षि जड़भरत को ही ले लीजिये, जड़भरत एक निष्पाप ऋषि थे, वे मुक्ति के द्वार पर पहुच चुके थे, उन्होंने हिरन के एक बेसहारा बच्चे को पाल लिया था। उस हिरन के बच्चे से उनका मन इतना लग गया था कि हर समय उन्हें हिरन के बच्चे कि ही चिंता लगी रहती थी।

यहा तक कि मृत्यु के समय भी उनका ध्यान उस हिरन के बच्चे पर था। मृत्यु के अंतिम क्षण में भी उनका ध्यान हिरन के बच्चे में ही था, इसी कारण अगले जन्म में उन्हें हिरन कि योनी मिली थी। इसीलिए मृत्यु के समय मनुष्य को अपना ध्यान परमात्मा कि ओर लगाना चाहिए।

वह एक ऐसा योद्धा बना जिसे हरा पाना नामुमकिन था। उसने कई लड़ाईया लड़ी और उनमे विजयी हुआ। हर बार उसे लगता कि उसके पिता उससे खुश हो जायेंगे। लेकिन हर बार उसके पिता सम्राट कहते कि अभी तुम्हे और सीखना है। अभी तुम पुरे नही हुए हो।

Man कैसे मरता है ?

मनुष्य का परम कल्याण मन को मरने से ही होता है। मन ईस्ट और गुरु के चरणों में समर्पित करने से ही मरता है। ऐसे कुछ भी कारलो मन मरेगा नही क्योकि मन को अहंकार से सहारा मिलता रहता है इसलिए मन जीवित बना रहेगा। मन दैन्यता, अकिंचनता, सम्मानहीनता इनसे मरता है, और ये सब तब संभव है जब गुरु कि कृपा मिले, गुरु कि सीमा में रहे। अगर गुरु कि आज्ञा का उलंघन करते है तब मन न जाने कहा कहा ले जाता है और नष्ट कर देता है।   

निष्कर्स

हमें अपने मन के पीछे नही भागना चाहिए। गुरुजन का आश्रय लेकर मन को अध्यात्मिक आनंद कि ओर लेकर जाना चाहिए। जिस प्रकार हम पानी को निचे ऊपर ले जाने के लिए यंत्र का प्रयोग करते है, उसी प्रकार मन के स्तर को भी नीचे से ऊपर ले जाने के लिए मंत्र, गुरुमंत्र, नाम जप, अध्यात्म और भजन कीर्तन इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए।  ज्ञान द्वारा मन को काबू में कर सकते है।

मन के बारे में कुछ सुप्रसिद्ध कहावते और मुहावरे

कबहू मन रंग तिरंग चढ़े, कबहू मन सोचत है धन को

इस मुहावरे का अर्थ यह है कि कभी मन सोचता है कि मै ये करन चाहता हु, मै ये करना चाहता हु, मै वो करना चाहता हु। कभी धन के पीछे भागता है। ये मन कि माया है ये भागता रहेगा।  

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

ऐसा कहा जाता है यदि मन शुद्ध हो तो भगवान का दर्शन तत्काल हो सकता है। लोग काफी पूजा-पाठ, अनुष्ठान, दान आदि करते हैं, मगर प्रभु के दर्शन नहीं होते इसका कारण यही है कि, उनका मन शुद्ध नहीं होता है। यह कहावत का भी यही अर्थ है कि अगर मन साफ है तो घर ही एक तीर्थ स्थान बन जाता है फिर गंगा नहाने या कोई तीर्थ स्थान जाने की कोई आवश्यकता नहीं। “कठौती” शब्द का अर्थ बर्तन होता है।

“मन के हारे हार, मन के जीते जीत”

मन में दुविधा, मन में युद्ध है,
मन खुद के ही विरुद्ध है,

ये मन की कैसी रीत?
सारा कुरूक्षेत्र सामने पड़ा,
जीत सके तो जीत,

यहां तू ही कृष्ण,तू ही पार्थ है
तुझे खुद ही समझना,क्या यथार्थ है।

मन बहलाना – किसी काम में लगकर मन को प्रसन्न करना।

मन हरा होना – प्रसन्न होना।

मन कचोटना – मन दुखी होना या क्लेश होना।

मन के लड्डू खाना – बेकार की आशा रखकर प्रसन्न होना। किसी बड़े सुख या लाभ की निराधार आशा करना।

मन मारना – इच्छा को रोकना।

मन मैला करना – मन में दुर्भाव रखना।

मन में बसना – बहुत पसंद आना।

मन में रखना – याद रखना या मन में छिपाकर रखना।

मन मिलना – विचारों में समानता होना।

मन से उतरना – मन में अनुराग या आदर न रह जाना।

मन टूटना – उत्साह, उमंग आदि का नष्ट होना।


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