लक्ष्य कैसे प्राप्त करे? | एक लघुकथा | Hindi Story
संकल्प और प्रबल इच्छाशक्ति ही सफलता का प्रथम सूत्र है, जो कभी भी खाली नहीं जाता।
एक पाठशाला में वहा के सभी विद्यार्थी उपस्थित थे। विद्यार्थियों का सैलाब उमड़ा हुआ था, क्योकि आज परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था। कई विद्यार्थी खुश थे तो कई विद्यार्थी दुखी भी थे। उनकी ख़ुशी और उदासी बिना कारण के नही थी, क्योकि जो विद्यार्थी परीक्षा में पास होंगे वो अगली कक्षा में जायेंगे और जो विद्यार्थी फेल होंगे वो उसी कक्षा में रहेंगे और शिक्षको कि खरी खोटी भी सुननी पड़ेगी।
उस पाठशाला में एक मंद बुद्धि विद्यार्थी भी था जो बहुत ही मुश्किल से पास होता था या उसे हमेशा फेल होने का डर बना रहता था। उसका नाम सुरेश था। सभी शिक्षक सुरेश को अच्छी तरह से जानते थे। इसलिए सबने सुरेश को फिर से इस बार पढ़ाई को लेकर उसे खूब सुनाया। जिसके कारण वह सुरेश अत्यंत दुखी हुआ और अपने घर कि ओर जाने लगा।
गर्मियों के दिन थे सुरेश पैदल ही अपने घर कि ओर जा रहा था। चलते चलते दोपहर कि धुप अधिक लग रही थी जिसके कारण सुरेश को भूख और प्यास भी लग रही थी। रास्ते में सुरेश एक पेड़ के निचे बैठ जाता है और आराम करने लगता है। सुरेश को प्यास भी लगी थी इसलिए वह अपने आस पास देखता है तो उसे थोड़ी ही दूर पर एक कुआ दीखता है।
सुरेश उठ कर उस कुए के पास पानी पिने के लिए जाता है। उसी समय गॉव के कुछ लोग वहां कुए पर पानी भरने के लिए आते है। सुरेश देखता है कि गॉव के लोगो के पास मुज कि रस्सी होती है और वह लोग उसी रस्सी में अपनी बाल्टी को बांधकर कुए से पानी निकाल रहे थे। लेकिन कुए से पानी निकालने के लिए गडारी या पहिया जैसा कुछ नहीं लगा था।
इसलिए वे लोग ऐसे ही जोर लगा कर रस्सी खींच रहे थे। वह रस्सी जिस पत्थर पर से खीच रहे थे उस पत्थर पर उस रस्सी के खींचे जाने से उस रस्सी के निशान बन गये थे। यह देख कर सुरेश को समझ में आने लगा कि कैसे एक मुज कि रस्सी भी बार बार रगड़ने से एक पत्थर को भी घिस देती है। तो मै भी यदि बार बार प्रयास करू तो अछे नम्बर से पास हो सकता हुँ।
इस दृश्य को देखने और समझने के बाद सुरेश के मन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। जिससे उसे एक नयी राह मिल गयी या मानो एक सफलता का सूत्र मिल गया। हा यह दृश्य किसी सफलता के सूत्र से कम भी नही था। सुरेश के मन में एक बार फिर से उत्साह जाग गया। उसका मन प्रसन्नता से भर गया। अब सुरेश पुरे जोश से मन लगाकर पढ़ाई करता और अगले वर्ष उसने अच्छे अंक प्राप्त करके सबको चौका दिया।
संकल्प और प्रबल इच्छाशक्ति ही सफलता का प्रथम सूत्र है, जो कभी भी खाली नहीं जाता। हमारे जीवन में भी यही चीज है। हम पर भी यही सूत्र लागू होता है। यदि हम भी अपना लक्ष्य तय कर ले और लगातार उस लक्ष्य कि ओर बढ़ते रहे उस लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए हर मुमकिन प्रयास करे। तब हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। अन्यथा लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत ही मुस्किल हो जाता है। जीवन में जिसका लक्ष्य पहले से ही तय होता है और वह उसके लिए आरम्भ से ही मेहनत करता है उसे उसका लक्ष्य जल्द ही प्राप्त हो जाता है। जिसका लक्ष्य पहले से तय नहीं होता है वह यहाँ वह भटकता रहता है। यहाँ वहा भटकने से जीवन का अनमोल समय व्यर्थ चला जाता है। और जब तक जीवन समझ में आता है तब तक हमारा जीवन काफी आगे निकल चूका होता है। जिससे कि मज़बूरी में न चाहते हुए भी हमें उतने में ही जीवन व्यतीत करना पड़ता है। और हम जीवन में अधिक तरक्की नहीं कर पाते है।