क्या है किस्मत कनेक्शन? नसीब की कहानी
अगर किस्मत ख़राब हो तो ऊँट पर बैठे बौने आदमी को भी कुत्ता काट लेता है।
यह कहानी व्यक्ति के किस्मत के बारे में है, कि कैसे हम सब किस्मत से बंधे हुए है। किस्मत को हम अलग अलग शब्दों में नसीब, समय और प्रकृति भी कह सकते है। मेरे जीवन के अब तक के अनुभव के अनुसार जो भी मैंने इस संसार में घटित होते देखा है वह सब किस्मत या नसीब पर आधारित होता है। हम सिर्फ एक कठपुतली के सामान है इस पृथ्वी पर एक निश्चित अवधि के लिए। जीवन में हम जो भी कुछ सोचते है सबकुछ वैसा नहीं होता है, क्योकि यह संसार सिर्फ हमारे अकेले लिए नहीं है। पशु, पक्षी, जिव, जंतु सभी का इस संसार पर सामान अधिकार है। किस्मत पर एक कहावत भी है जो मुझे याद है, “अगर किस्मत ख़राब हो तो ऊँट पर बैठे बौने आदमी को भी कुत्ता काट लेता है।”
आइये मै आपको एक कहानी के माध्यम से बताता हु, जो मेरे एक मित्र के बारे में है, जिससे आपको समझ में आ जायेगा कि किस्मत क्या होती है, और किस्मत इन्सान को कहा से कहा पंहुचा सकती है।
यह बात लगभग १४ साल पहले कि है। जब मै BAMS कि पढाई करने के लिए बेलगाम गया था। बेलगाम कर्नाटक में स्थित है। वहा पर मेरी मुलाकात प्रदीप से हुई। वह अपने चाचा के साथ आया था। प्रदीप उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से है। वहा मेरी मुलाकात और दो लडको से हुई वह दोनों अपने पिताजी के साथ आये थे उनमे से एक का नाम धर्मेन्द्र था और दुसरे का नाम ज्ञानेंद्र। मै अकेला गया था, मेरे पिताजी साथ नहीं आये थे।
वहा हम चारो ने आपस में बातचीत कि एक दुसरे से जान पहचान हुई तब मुझे पता चला कि हम चारो में एक समानता यह है कि हम चारो उत्तर प्रदेश से है और मुंबई में रहते है। हम चारो एक ही राज्य के होने कि वजह से एक दुसरे पर भरोसा भी बन गया और सामान्य तौर पर ऐसा होता भी है कि जहा एक ही राज्य के लोग किसी और राज्य में मिलते है तो एक दुसरे कि मदद भी करते है और भरोसा भी करते है।
इसलिए हमने आपस में बातचीत करके उसी दिन कॉलेज से दूर एक मकान किराये पर ले लिया और साथ मिलकर रहने लगे। साथ रहते रहते हम चारो एक दुसरे को अच्छे से जानने लगे एक दुसरे के व्यवहार को भी समझने लगे और काफी अच्छी दोस्ती भी हो गयी हम चारो में। प्रदीप उन दोनों से एकदम अलग और दबंग था। प्रदीप हट्टा कट्टा था और हम तीनो दुबले पतले थे इसलिए अगर प्रदीप कभी किसी बात को लेकर भड़क जाता तो उसे संभालना हम तीनो के लिए बहुत मुस्किल हो जाता था। लेकिन प्रदीप और मुझमे बहुत सी समानताये थी हमारे विचार एक दुसरे से बहुत मिलते जुलते थे इसलिए हमारी दोस्ती बहुत गहरी हो गयी।
हम चारो एक ही राज्य के होने कि वजह से एक दुसरे पर भरोसा भी बन गया और सामान्य तौर पर ऐसा होता भी है कि जहा एक ही राज्य के लोग किसी और राज्य में मिलते है तो एक दुसरे कि मदद भी करते है और भरोसा भी करते है। इसलिए हमने आपस में बातचीत करके उसी दिन कॉलेज से दूर एक मकान किराये पर ले लिया और साथ मिलकर रहने लगे। साथ रहते रहते हम चारो एक दुसरे को अच्छे से जानने लगे एक दुसरे के व्यवहार को भी समझने लगे और काफी अच्छी दोस्ती भी हो गयी हम चारो में। प्रदीप उन दोनों से एकदम अलग और दबंग था। प्रदीप हट्टा कट्टा था और हम तीनो दुबले पतले थे इसलिए अगर प्रदीप कभी किसी बात को लेकर भड़क जाता तो उसे संभालना हम तीनो के लिए बहुत मुस्किल हो जाता था। लेकिन प्रदीप और मुझमे बहुत सी समानताये थी हमारे विचार एक दुसरे से बहुत मिलते जुलते थे इसलिए हमारी दोस्ती बहुत गहरी हो गयी।
धीरे धीरे मै प्रदीप के बारे में मै सबकुछ जान गया उसके चाचा से भी मिला, प्रदीप के मुंबई वाले घर पर भी गया सबकुछ देखा काफी अच्छा लगा और उत्तर प्रदेश गया तो प्रदीप के पिताजी से भी मिला वो भी अच्छे है। प्रदीप के पिताजी एक किसान है जो गाव में ही रहकर खेती करते है। उनकी आमदनी अधिक नहीं थी लेकिन प्रदीप के दो चाचा जो मुंबई में रहते है उनकी आमदनी अच्छी थी और प्रदीप कि किस्मत भी अच्छी थी इसलिए प्रदीप को उसके चाचा ने डॉक्टर बनाने कि सोची। वर्ना आज के समय में एक किसान के लिए अपने बेटे को निजी कॉलेज डॉक्टर कि पढाई करवाना आसान नहीं है। ये सब किस्मत से ही हो सकता है। घर में बड़ा होने के कारण प्रदीप को उसके चाचाओ से बहोत प्यार और दुलार मिला वो उनका लाडला भी था इसलिए वो प्रदीप को स्कूल कि छुट्टियों में मुंबई घुमाने के लिए लाते रहते थे। गाव से प्रदीप को बारहवी कि पढाई पूरी करने के बाद मुम्बई लेकर आये।
मेडिकल कॉलेज का पता किया और मेडिकल कॉलेज में दाखिला करवाया बेलगाम में वह जाकर रहने खाने कि व्यवस्था सबकुछ किया। प्रदीप के कॉलेज के एक साल के बाद प्रदीप के लिए अस्पताल खोलने के लिए अपने गाव में जमीन भी खरीद लिया और प्रदीप के पढाई पूरा करते ही उस जमीन पर एक बड़ा सा अस्पताल भी बनवा कर दिया जो उन्होंने पहले से ही अस्पताल के लिए ख़रीदा था। साथ ही एक बड़ी गाडी और ड्राइवर भी दिया आने जाने के लिए। सबकुछ पहले से तैयार मिला प्रदीप को इसको किस्मत ही कहते है वर्ना कई डॉक्टर को भी अपना निजी अस्पताल खोलने में पूरी उम्र बीत जाती है। आज प्रदीप भी अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा रहा है अस्पताल अच्छे से चला रहा है। अपने अस्पताल में बहुत सी सुविधाए दे रहा है। मरीजो कि लम्बी कतारे लगी रहती है। शादी कर लिया एक बेटा भी है। एक और बड़ी सी गाड़ी ले लिया है। जीवन का आनंद ले रहा है। यह सब किस्मत से ही संभव है। जिसकी किस्मत जहा होती है वह वहा पहुच ही जाता है।