एक गलत फैसला और मौत मिली वृद्धाश्रम में
बुढ़ापे के डर से दुसरो पर किया भरोसा और जिंदगी तबाह हुई।
इस कहानी कि सुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के एक गॉव आजमगढ़ से जहा एक बुजुर्ग धनि दम्पति रहते थे। वो एक सरकारी कोटा चलते थे जिससे उन्होंने बहुत धन कमाया और मजे से जीवन व्यतीत कर रहे थे। आलीशान मकान और जमीन जायदात सबकुछ था उनके पास सिवाय औलाद के।
वे लगभग सत्तर वर्ष के हो चुके थे। कोई संतान न होने के कारण उन्हें बुढ़ापे का डर सताता था कि बुढ़ापे में उनका क्या होगा? उनकी देखभाल कौन करेगा? उनकी सम्पत्ति का क्या होगा? और बहुत सी चिंता होती रहती थी।
उनके एक दूर के रिश्तेदार थे शर्मा जी जो कि मुंबई में रहते थे अक्सर उनकी बाते शर्मा जी से होती रहती थी। वे शर्मा जी के बारे में सबकुछ जानते थे और शर्मा जी भी उनके बारे में सबकुछ जानते थे। एक बार शर्मा जी ने उन्हें मुंबई बुलाया अपने घर पर रखा और पूरी मुंबई में घुमाया हर जगह ले गए उनका अच्छे से ध्यान रखा और देखभाल कि जिससे वे बुजुर्ग दम्पति बहुत खुश हुए और उनका विश्वास शर्मा जी पर और बढ़ गया। और मुंबई किसको पसंद नहीं आयेगी, मुंबई शहर ही ऐसा है कि हर कोई यहाँ खीचा चला आता है उनको भी मुंबई भा गयी।
फिर धिरे धिरे यह सिलसिला चलने लगा वे बुजुर्ग दम्पति हर पांच छह महीने के बाद मुंबई में घुमाने के लिए ले आते थे और शर्मा जी के साथ उनके घर पर रहते थे और शर्मा जी भी उनकी अच्छे से सेवा भाव करते थे।
फिर एक दिन शर्मा जी के मन में एक विचार आया और शर्मा जी ने बजुर्ग दम्पति से कहा कि अब आप मुंबई में हमारे साथ हमारे घर पर ही रहे बार बार मुंबई से उत्तर प्रदेश ले आने और ले जाने में दिक़्कत होती है हम आप दोनों कि देखभाल यहीं करेंगे।
बुजुर्ग दम्पति का शर्मा जी पर बहुत विश्वास था और उनको मुंबई(Mumbai) उनको जम गयी थी मुंबई कि सुख और सुविधाए उनको बहुत अच्छी लगती थी इसलिए उन्होंने शर्मा जी के साथ मुंबई में रहने का फैसला कर लिया और मुंबई में रहने के लिए आ गये शर्मा जी के घर।
शर्मा जी को भी लग रहा था कि बुजुर्ग दम्पति अब सत्तर कि उम्र पार कर चुके है इसलिए अब जादा उम्र तक जीवित नहीं रहेंगे चार पांच सालो में मर जाएंगे और उनकी गॉव कि पूरी संपत्ति शर्मा जी कि हो जाएगी। इसलिए उन्होंने यह सुझाव बुजुर्ग दम्पति को दिया था।
जैसे ही कुछ महीने बीत गए उनको शर्मा जी के साथ रहते हुए फिर शर्मा जी ने अपना रंग दिखाना सुरु किया। शर्मा जी ने बुजुर्ग दम्पति से कहा कि अब आपको तो हमारे साथ ही यहाँ मुंबई में रहना है तो गॉव कि सम्पति को रखकर क्या करेंगे आप? वो गॉव कि सम्पति बेचकर हमें दे दीजिये हम आपकी देखभाल करेंगे, आपकी सेवा करेंगे और कर भी रहे है।
बुजुर्ग दम्पति के गॉव वालो ने उनको कई बार मना किया कि वे ऐसा न करे और गॉव में ही आकर उनके साथ रहे और गॉव वाले ही उनका देखभाल करेंगे अपनी सम्पति न बेचे और अपनी थोड़ी सी जमीन गॉव वालो को दे दे एक मंदिर बनाने के लिए लेकिन उन्होंने किसी कि भी बात नहीं मानी।
उनको शर्मा जी पर पूरा विश्वास था इसलिए वे राजी हो गए और एक एक करके अपनी पूरी सम्पत्ति को बेच कर उसका पूरा पैसा शर्मा जी को दे दिया। पैसा मिल जाने के बाद जब शर्मा जी को पूरा यकीन हो गया कि बुजुर्ग दम्पति के पास अब कुछ भी सम्पति नहीं बची है और न ही कोई पैसा तब शर्मा जी ने उनपर अत्याचार करना सुरु कर दिया क्योकि अब बुजुर्ग अब पूरी तरह से शर्मा जी पर निर्भर थे उनके पास और कोई दूसरा चारा नहीं था।
उनसे घर के काम करवाना सुरु कर दिया जैसे कि घर कि साफ सफाई बाज़ार से सब्जी लाना दूध लाना इत्यादि और उनकी सब सुविधाये बंद कर दी सिर्फ दो वक्त का भोजन देते थे यहाँ तक कि उनको दवा के लिए भी पैसे नहीं देते थे।
ऐसे ही चलता रहा और दस वर्ष बीत गए लेकिन बुजुर्ग दम्पति कि उम्र घटने कि जगह बढ़ती जा रही थी जिससे शर्मा जी बहुत परेशान थे वो इनसे अपना पीछा छुड़ाना चाहते थे लेकिन वैसा हो नहीं रहा था इसलिए शर्मा जी ने इनपर और अत्याचार करना सुरु कर दिया अत्याचार कि सीमाओं को और बढ़ा दिया।
वो रोज सुबह होते ही बुजुर्ग दम्पति को घर से बहार निकल देते थे और रात होने तक घर के अन्दर नही लेते थे। वे बिचारे दिनभर घर के बहार बैठे रहते थे दूप हो या बरसात या फिर यहाँ वह रस्ते पर भटकते रहते थे और वे इतना डरे हुए रहते थे कि उनकी भी हिम्मत नहीं होती थी कि रात होने के पहले घर के अन्दर जाने कि कोशिश भी करे।
इतने वर्ष तक रहते रहते उन बुजर्ग कि भी आस पास पड़ोस में थोड़ी बहुत जान पहचान हो गयी इसलिए वे जब शर्मा जी के पड़ोसियों को देखते थे तब उनसे थोड़ी बाते कर लिया करते थे अपना दुःख बताते थे अपने अत्याचार के बारे के बताते थे और उनसे अपने लिए मदद मांगते थे कि हमारा ध्यान रखो और दवा के लिए पैसे भी मांगते थे भिखारियों के जैसी जीने के लिए मजबूर थे और शर्मा जी के कुछ पडोसी उनकी मदद भी कर देते थे उन्हें दवा लाकर दे देते थे और कुछ खाने पिने के लिए भी दे देते थे।
शर्मा जी को यह सब पता चल गया और शर्मा जी का यह कारनामा भी लोगो को पता चल गया जिससे कि उनकी समाज में उनके पड़ोस में बुराई होने लगी। जिससे परेशान होकर शर्मा जी ने उन दोनों बुजुर्ग को घर निकलना बंद कर दिया उन्हें घर में ही कैद कर दिया। और कुछ महीनो के बाद चुपके से बिना किसी को बताये चुपके से उनको विरार के एक वृद्धाश्रम में डाल दिया।
फिर उनकी जिंदगी वृद्धाश्रम में बीतने लगी वे बहुत दुखी रहते थे बहुत परेशान रहते थे कि उन्हें इस तरह जिल्लत भरा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है उनका ऐसा हाल हो जायेगा बुढ़ापे में ऐसा उनको अंदाजा न था यह सब सोच सोच कर वे बहुत चिंता में डूबे रहते थे और बहुत दुखी रहते थे रोते थे, जिससे उनको मानसिक बिमारी भी हो गयी।
एक वर्ष तक वृद्धाश्रम (Vrddhaashram) में रहने के बाद बुजुर्ग दमप्ती में से पुरुष कि मृत्यु हो गयी। शर्मा जी को यह खबर मिली तो शर्मा जी ने किसी को नहीं बताया अकेले वृद्धश्रम गए और उनका क्रियाकर्म किया और बुजुर्ग महिला को घर वापस लेकर चले आये। महिला के घर आने के बाद लोगो को पता चला कि शर्मा जी ने उनको वृद्धाश्राम में रखा था।
वो बुजुर्ग महिला भी अपने पति के गम में डूबी रहती थी और उनको भी अपने गलत फैसले पर बहुत पछतावा होता था और अकेलेपन के कारण वे भी जादा दिन तक जीवित नहीं रही और एक वर्ष के भीतर ही उनकी मृत्यु हो गयी।