तुलना – कंपैरिजन करने के होते हैं बहुत नुकसान
तुलना, ईर्ष्या, हीनभावना, जलन से बचें ।
तुलना के खेल में मत उलझो क्यों की इस खेल का कही कोई अंत नहीं है। जहा तुलना कि शुरुवात होती है वही से आंनद और अपनापन ख़तम होता है। तुलना करने के वजह से जलन की भावना उत्पन्न होती है जिसके कारण दुःख और अशांति की शुरुवात होती है और अधिकतर समय सोचने में लग जाता है कि हम उनसे आगे कैसे निकले या फिर उनको आगे बढ़ने से कैसे रोके या उनका नुक्सान कैसे हो।
तुलना के चक्कर में ही फसे रहते है जिसके कारण हम अपने स्वयं के बारे में नही सोच पाते की हम अपना विकास कैसे करे और जीवन कि राह में उन्नति, सुख शांति, समृधि कैसे प्राप्त करे।
तुलना के कारण मनुष्य हमेशा दुखी रहता है जिसका प्रभाव उसके परिवार पे भी पड़ता है और परिवार के सदस्य भी दुखी रहने लगते है। इश्वर कि प्रत्येक रचना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ और अनोखी है। जिसका कोई मेल नहीं है। उदहारण के तौर पैर हमारे उंगुलियों के रेखा को ही ले लीजिये जो कभी किसी से मेल नहीं खाती है हमारे उंगुलियों में यह रेखाए तब बननी शुरु होने लग जाती है जब मनुष्य माँ के गर्भ में लगभग ४ महीने के होते है इन रेखाओ को भी सुचना डीएनए(DNA) देता है। आश्चर्य है कि ये रेखाए किसी भी परिस्थिति में मनुष्य के माता पिता या संसार के किसी भी मनुष्य से मेल नहीं खाती। रेखाए बनाने वाला इतना विशिस्ट है कि वह अरबो कि संख्या में प्राणी जो इस संसार में है और वो भी जो गुजर चुके है उन सभी की उंगुलियों में उपस्थित इन रेखाओ के एक एक डिजाईन से परिचित है। और हर बार एक नए प्रकार का डिजाईन स्थापित करता है।
इस लिए हमे कभी किसी से तुलना नहीं करनी चाहिए क्यों कि यदि सब मनुष्य बराबर हो जाये तो मनुष्य का कोई भी कार्य सुचारू रूप से नहीं चल पाएगा। सफलता कभी भी हाइट बॉडी और लुक पर निर्भर नहीं होती यह केवल हमारे ज्ञान और बुद्धिमता पर निर्भर होती है और भाग्य पर भी निर्भर करता है, आपके नसीब में जो है वो आपको मिल कर रहेगा वो कोई आप से छीन नहीं सकता है और जो आपके नसीब में नहीं है वो आप किसी से ले भी नहीं सकते है। अपनी मेहनत से जो भी हासिल कर सको उसी में खुश रहो और संतुष्ट रहो किसी और का मत देखो।
तुलना करनी है तो अच्छे कर्मो में करे जिसमे किसी का कोई नुक्सान नहीं होता है। जैसे कि पढाई में करे, किसी कि सेवा में करे, दान देने में करे, किसी कि सहायता में करे,
तुलना करने के दुस्परिणाम :
- मन में द्वेष कि भावना उत्पन्न होती है,
- मनुष्य अपने आप को दुसरो के सामने हीन समझने लगता है,
- बदले कि भावना उत्पन्न होती है,
- अपराध कि शुरुवात होती है,
- दुसरो को निचा दिखाने के कोशिश में लगे रहते है,
- जरा जरा सी बात पर बड़ी समस्या खड़ी कर देते है,
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