भूतिया हवेली का रहस्य | हिंदी कहानियाँ
अँधेरा होते ही दोनों घर से निकल पड़े हवेली का रहस्य जानने के लिए।
अँधेरी रात थी चारो तरफ सन्नाटा था। कभी कभी कुत्तो के भौकने कि आवाज़ सुनाई पड़ती थी। आधी रात बीत चुकी थी। मामाजी के घर से कुछ दुरी पर सामने एक हवेली थी। हवेली में उजाला था। अशोक खेतो को सरपट पार करता हुआ उस ओर अकेले बढ़ रहा था। उस हवेली में आधी रात के बाद कल भी ऐसा उजाला देखा था। मामाजी ने पहले ही अशोक से कह दिया था कि उधर हवेली कि ओर जाने कि जरुरत नहीं है।
वह हवेली भूतो का डेरा है। अशोक मन ही मन मुस्कुराने लगा। वह जानता था कि भुत कुछ नहीं होते। यह कल्पना है। कक्षा में विज्ञान के शिक्षक ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अच्छी तरह समझाया था। इस रहस्य का पता लगाने के लिए उसने मन में ठान लिया।
मामाजी ने कहा था इस हवेली में पिछले दस पंद्रह सालो से कोई नहीं रहता। पहले उसमे एक जमींदार का परिवार रहता था। अब जमींदार का परिवार ख़तम हो गया है। उस तरफ कोई आता जाता नहीं। एक बार घिसु उधर गया था बेचारे का बुरा हाल हुआ था। तीन महीने तक खाट पकडे रहा। अशोक करवाते बदलता रहा आधी रात को उठकर छत से उसने हवेली कि तरफ देखा।
वहां रौशनी थी। गर्मी कि छुट्टियां बिताने के लिए वह मामाजी के घर आया था। यह एक समृद्ध गाव है, मामाजी के पास एक विदेशी डिजिटल कैमरा भी है, यह बात अशोक को मालूम थी। मामाजी कि एक लड़की थी उसका नाम था पिंकी। अशोक ने पिंकी से सलाह मशवरा किया। दोनों बहादुर थे। अगला कदम उठाने के लिए उन्होंने कमर कास ली।
अगली सुबह उसने मामाजी से कैमरा मांग लिया। मामाजी को साथ बैठकर मामाजी का फोटो लिया। फिर मामा मामी और पिंकी का भी फोटो खींचा। मामा मामी बहुत खुस थे। मामाजी ने कैमरे कि तारीफ करते हुए कहा रात में मामूली रौशनी में बिना फ्लैश के भी यह अच्छी फोटो खीच लेता है। कमाल का लैंश लगा है इसमें। अशोक ने कैमरा अपने पास रख लिया। कैमरा पाकर अशोक और पिंकी बहुत खुस थे। वे दोनों रात होने का इंतजार कर रहे थे।
रहस्य का पता लगाने का यह अच्छा अवसर था। अँधेरा होते ही दोनों घर से निकल पड़े हवेली सामने थी। अन्दर से हसी और कह्कहाने कि आवाज़े आ रही थी। अशोक और पिंकी ने पहले आस पास चारो तरफ देखा। कही कोई खतरा नहीं था। वे दबे पाँव हवेली में चले गए। बीचोबीच एक बड़ा कमरा था। उसका दरवाज़ा अन्दर से बंद था। खिडकिया निचे से बंद थी लेकिन ऊपर से खुली थी।
अशोक ने बड़ी चालाकी से अन्दर झाककर देखा। हट्टे-कट्टे, मोटे तगड़े, बड़ी बड़ी मुछोवाले कई लोग पगड़ी बांधे बैठे थे। उसके साथ कमीज और पेंट पहने हुए भी कुछ लोग थे। उनकी आँखों से आग बरस रही थी। आँखे लाल लाल थी। सबके चेहरे डरावने थे। उस समय वे खाने में मस्त थे। अशोक ने उन्हें ध्यान से देखा उनके गले में कारतूसो का एक पत्ता लटक रहा था। बंदूके और तलवारे भी रखी थी। कुछ लोग लुढके हुए पड़े थे। अशोक ने इशारा किया, पिंकी ने बड़ी सावधानी से कैमरा निकला। गैस कि बत्तियो कि रौशनी इतनी तेज थी कि आसानी से फोटो लिया जा सकता था। उसने कई फोटो खींचे और घर कि ओर चल पड़े।
अगले दिन सुबह सुबह अशोक ने सायकल उठाई और नारायणपुर कि ओर चल पड़ा, वहा फोटोग्राफर कि एक दूकान थी। सभी फोटो तैयार कराकर शामतक वह लौट आया। पिंकी ने अपने पिता जी से कहा आप कहते है कि भूतो के पैर उलटे होते है। उनकी छाया नहीं होती। उनकी फोटो नहीं ले सकते लेकिन कल रात हम भूतो के डेरे पर गए थे उनके फोटो लिए, जरा देखिये उन्होंने फोट पिताजी को दे दिया।
वे परेशान हो गये उन्हें ऐसा काम पसंद नहीं था। फोटो को देखकर उनकी आँखे खुली कि खुली रह गयी। बोले तो क्या भुत इंसानों जैसे होते है। इंसानों जैसे नहीं इंसान ही भुत है। इनके पैर सीधे है, इनकी छाया भी है, इनके पैर भी सीधे है, इनका फोटो भी आ गया है। असल में भुत कि अफवाह है। कोई हवेली कि तरफ न जाए, उसका रहस्य न खुले, इसलिए उन्होंने भुत होने कि अफवाह फैलाई है। यदि वह लोगो का आना जाना होता तो यह लोग वहा अपना क्रिया कलाप कैसे चलाते? फिर कुछ रूककर बोला आप मेरे साथ थाणे चलेंगे? मुझे इस मामले में बहुत गड़बड़ी लगती है, अशोक ने कहा।
थानेदार ने फोटो देखते ही कहा इन डाकुओ के गिरोह ने काई वर्षो से उत्पात मचा रखा है। कई वर्षो से इनकी तलाश कि जा रही है। शाबाश तुम दोनों ने बहुत बहादुरी का काम किया है। कहा है ये? आप तैयारी कीजिये मै ठिकाना बताता हूँ, अशोक ने कहा। उस रात भूतो के डेरे पर पुलिस ने छापा मारा। दोनों ओर से गोलिया चली। सवेरा होते ही डाकुओ ने हथियार डाल दिया। उनके कुछ साथी मारे गये थे।
गाँव वालो ने हवेली में बसे भूतो को देखा तो चकित रह गये। सभी डाकुओ के आतंक से मुक्त हो गए। जिला कलेक्टर ने अशोक और पिंकी कि बहादुरी के कारण उनके नाम राष्ट्रपति कार्यालय भिजवा दिए। आनेवाले गणतंत्र दिवस पर उन्हें वीरता के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।